Rameshwar Jha also at times wrote in hindi, majority of his composition were in Sanskrit. These are some of his rare verses composed in hindi.
(1)
अन्धकार से दूर, निज प्रकाश के उजालेनिज की अभिव्यक्ति से क्रि़ड़ा करता हूँ निज में
Away from ignorance there is self illuminated space
Through my self-expression I am engrossed (take pleasure) in myself
(2)
मैं वह मैं हूँ
जिस मैं में सभी मैं रहते हैं।
बनते बिगड़ते हैं जिस में
वह हूँ सदा एक रस अपने में।।
I am that self
In which all others reside -
are formed and get dissolved.
I always remain in harmony with self
(3)
नित्य निराली छटा
निज की अभिव्यक्ति में।
रचना रचता हूँ
शम दमों की अपनी इच्छा शक्ति में।।
Ever-changing splendid image
In self-expression
I create
Through vibrations of my free will
(4)
समरस होकर भी
करता रसों का सर्जन मैं।
एक होकर भी
बिखरता हूँ अनेकों में।।
Being immersed in self
I am create meanings
Being one
I break into multitude
(5)
यही तो व्यापकता मेरी
जो दिखता हूँ एक अनेकों में।
और विचित्रता है कैसी
जो चेतना ही भास रहा जड़ रूपों में।।
This is my boundlessness
That I am seen in multiple form
And look at this bewilderment
Consciousness is expressed as inanimate things
(6)
सर्व शक्तिमान सब में विद्यमान
सबका मैं सर्जनहारा।
मैं आत्मा तत्व
सब तत्वों का हूँ तत्व अकेला।।
I am all powerful and present in everything
I am creator of all
I am conscious awareness
I am the form that creates all forms
(7)
मैं सत्य हूँ सदा एक रस रहता हूँ
नित्य नई रचना करती मेरी शक्ति।
सत् से चित् चित् से आनन्द
आनन्द से होती है मेरी अभिव्यक्ति।।
I am truth that always remain undiluted
I constantly create through my free will
Existence to consciousness from consciousness to bliss
And bliss is the way I express myself
(8)
अपने आस्तित्व के विस्तार से
रचता हूँ दृश्यों का संसार सदा।
और निज को निज में ही बहलाकर
निज को ही फिर छुपा लेता।।
Through the expansion of my being
I continuously create world of multiple visual representations
I hide myself again by humoring and
Indulging in my own numerous states.
(9)
तन मन की ये अवस्थायें
न मुझको हैं बदल पाते।
घनघोर प्रचण्ड बादल से
क्या? कभी आकाश घबराते।।
The bodily and psychological states
are not able to impact me
Do the dark, menacing clouds
ever a cause of concern for the sky?
न संसार बुरा है न भला है
है केवल यह अपनी स्थिति का भेद।
अपने में रहने से बन जाता है
यह भेद सब भी अपना ही रूप विशेष।।
This world is neither good or bad.
It is just differences of our perceived state.
If you live in self awareness
this distinction also appears as one our your own special form.
(11)
न कुछ छोड़ना है यहाँ
न कुछ पकड़ना है
खुद को समझकर केवल
खुद में ही समा जाना है
There is nothing to let go
there is nothing to grasp.
Just have to understand self
and merge with own consciousness.
(12)
जो पूर्ण है अपने में आप
वह बनने से नहीं बन सकता
जो सत्य है अपने में आप
वह दिखावट में फस नहीं सकता
That which is complete in self
can not be created through external means.
One that is self evident truth
can not be ensnared in deceptions.
(13)
देह, प्राण, मन, बुद्धि सभी ये
रहते ग्रहण त्याग के चक्कर में
इनका द्रष्टा इनसे नहीं डरता
आनंद मगन मैं अपने में
Body, consciousness, desire and intellect
all these remain in sphere of consuming and letting go.
The one who is observer does not become afraid
and remains immersed in self bliss.
(14)
भला बुरा है अपनी सृष्टि
फिर इसका विश्लेषण क्या?
सत्य रूप तो आप स्वयं हैं
फिर उसका अन्वेषण क्या?
Good and bad are self creation,
why keep on analyzing this?
You are truth personified
why keep on investigating it?
(15)
दूर - दूर अति दूर में मैं हूँ
पास – पास अति पास में मैं हूँ
दूर पास का भासक मैं हूँ
नित्य नवीन पुरातन मैं हूँ
I am furthest of the far
I am nearest of the near
I am the distinction between near and far
I am ever changing and ancient
I am furthest of the far
I am nearest of the near
I am the distinction between near and far
I am ever changing and ancient
(16)
मैं था पहले और अभी हूँ
आगे भी मैं सदा रहूँगा
देह में रहना छोड़ दिया है
मरना जीना छूट गया है
I was before and I am now
I will remain for ever
I have stopped existing in the body
Death and life have no meaning for me
(17)
मैं हूँ सत्य सदा शिव सुन्दर
व्यापक एक अखण्ड निरन्तर
केश समान देह सब मेरे
कटते मरते न मुझे सताते
I am the truth, divinity and beauty
I am all pervading and undivided entity
My body parts are like hair
They are cut, they die but do not affect me
(18)
मन बुद्धि में जो कुछ आता है
श्रवण नयन में जो कुछ आता
इन सबका मैं सृष्टा धर्ता
बना बना कर नाश विधाता
What ever comes in felt or understood What ever can be heard or be perceived
I am the creator and preserver
And also the destroyer of it all
- महामहोपाध्याय रामेश्वर झा
- Mahamahopadhyaya Rameshwar Jha "Guru ji"
Shiv Yogi Varanasi
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